• दिल्ली चुनाव में हार के बाद आप के नेता बीजेपी में जाने की तैयारी कर रहे हैं, पंजाब में भी संकट के आसार

आनंद सिंह की कलम से.

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी (आप) को करारी हार का सामना करना पड़ा. केजरीवाल, जिन्होंने खुद को दिल्ली का अभिन्न हिस्सा मानते हुए कई बार मोदी जी को चुनौती दी थी, आज उसी दिल्ली में हार का सामना करना पड़ा. केजरीवाल ने चुनाव से पहले कहा था कि इस जन्म में मोदी जी, उन्हें हराने में सक्षम नहीं होंगे, लेकिन 8 फरवरी को अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के दिग्गज नेता साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश साहिब सिंह वर्मा ने हराया. यह हार केवल एक चुनावी हार नहीं है, बल्कि यह अरविंद केजरीवाल की राजनीति के अहंकार और बड़बोलेपन का परिणाम है, जिसने उनकी खुद की पार्टी को भी संकट में डाल दिया है. दिल्ली में आप के नेताओं में बेचैनी बढ़ने लगी है, और पार्टी में बड़े पैमाने पर टूट की खबरें आ रही हैं. कई नेताओं के बीजेपी में जाने की संभावना जताई जा रही है, और यह स्थिति न केवल दिल्ली, बल्कि पंजाब में भी आम आदमी पार्टी के लिए संकट का कारण बन सकती है.

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यशवंत सिंह, “भड़ास” के संपादक, जिन्होंने चुनाव से पहले दिल्ली की जनता का मूड जानने के लिए चौबीस घंटे पुरानी दिल्ली से नई दिल्ली तक ऑटो चलाकर लोगों से बातचीत की थी, उन्होंने सोशल मीडिया पर यह खुलासा किया कि दिल्ली की सड़कों पर केजरीवाल के प्रति नाराजगी साफ देखी जा रही थी. उनके मुताबिक, ऑटो चालकों का एक बड़ा वर्ग अब केजरीवाल के खिलाफ हो चुका था. वे कहते हैं, “बीजेपी को वोट देंगे क्योंकि केजरीवाल ने ऑटो वालों के लिए कुछ नहीं किया, बल्कि उनकी पेंशन भी बंद कर दी.” यह बात सच भी है कि आम आदमी पार्टी के लिए उनका आधार वोट बैंक, यानी ऑटो वाले, अब बीजेपी के पक्ष में झुकने लगे हैं. इसके अलावा, केजरीवाल की शराब नीति (एक पर एक फ्री) भी लोगों के बीच नफरत का कारण बन चुकी है. इस नीति से परिवार टूटने, स्वास्थ्य बिगड़ने और सामाजिक समस्याओं में इजाफा हुआ. इस शराब नीति के खिलाफ लोगों का गुस्सा बढ़ गया, जो आम आदमी पार्टी के लिए एक बड़ा नकारात्मक फैक्टर साबित हुआ.

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अरविंद केजरीवाल की हार के कारणों को लेकर कई विश्लेषक यह मानते हैं कि उन्होंने दिल्ली की वास्तविक समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दिया. हेल्थ और एजुकेशन में कुछ अच्छे कार्य हुए थे, लेकिन इन क्षेत्रों में भी बड़े-बड़े घोटाले हुए. पानी-बिजली के मुफ्त वादे में भ्रष्टाचार ने भी पार्टी को शर्मसार किया. कई योजनाएं तो फाइलों में ही पड़ी रह गईं, और दिल्ली के आम लोग इससे प्रभावित हुए. इसके अलावा, आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेता सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया और खुद केजरीवाल तिहाड़ जेल तक पहुंच चुके थे. पार्टी की छवि को सबसे बड़ी चोट तब लगी जब शराब घोटाले को लेकर उनके ऊपर गंभीर आरोप लगे. भाजपा ने इस मुद्दे को बखूबी उछाला और जनता के बीच एक नकारात्मक प्रचार किया. इसके परिणामस्वरूप, केजरीवाल की छवि पर गहरा असर पड़ा और जनता ने उन्हें नकारना शुरू कर दिया. यहां एक बात पर ध्यान देना होगा कि जब सेनानायक हारता है, तो सैनिक भी हार मान लेते हैं. यही हाल आम आदमी पार्टी का हुआ है.

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अब पार्टी में टूट की खबरें आ रही हैं और यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी यदि आप के कई नेता जल्दी ही बीजेपी में शामिल हो जाएं. इन नेताओं में से कई लोग इस दिन का इंतजार कर रहे थे और अब वे बीजेपी का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो सकते हैं. पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की स्थिति खतरे में आ सकती है. भगवंत मान के लिए अब पार्टी को बनाए रखना मुश्किल हो सकता है क्योंकि उनका सबसे बड़ा चेहरा, यानी अरविंद केजरीवाल, चुनाव हार चुके हैं. अब भगवंत मान को पार्टी को संभालने की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. पंजाब में भी कई आप नेता बीजेपी में शामिल हो सकते हैं और यह आम आदमी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है.

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अरविंद केजरीवाल की हार यह साबित करती है कि बड़बोलापन और अहंकार की राजनीति हमेशा नकारात्मक परिणाम देती है. उन्होंने अपने प्रचार में जितने भी दावे किए, वह सब गलत साबित हुए और अंत में उन्हें चुनावी हार का सामना करना पड़ा. उनकी पार्टी अब टूट के कगार पर है, और यह स्थिति दिल्ली ही नहीं, बल्कि पंजाब के लिए भी चिंताजनक हो सकती है. आखिरकार, केजरीवाल के इस चुनावी हार से यह सिद्ध हो गया है कि सिर्फ भाषणों और बड़े-बड़े दावों से राजनीति नहीं चलती, बल्कि जब तक आप जनता की वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं करते, तब तक जनता का विश्वास बनाए रखना मुश्किल होता है. अब यह देखना होगा कि अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी आगामी दिनों में क्या कदम उठाती है, लेकिन पार्टी में संभावित टूट और नेताओं के बीजेपी में शामिल होने की खबरों ने आम आदमी पार्टी को संकट में डाल दिया है.

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