• बाहा पर्व के दौरान चंपाई सोरेन ने उठाए आदिवासी मुद्दे, 23 मार्च से जन आंदोलन का आह्वान

फतेह लाइव, रिपोर्टर

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और सरायकेला के भाजपा विधायक चंपाई सोरेन ने बुधवार को अपने पैतृक गांव झिलिंगगोडा में बाहा पर्व का आयोजन किया. इस धार्मिक पर्व में उन्होंने पूरे आदिवासी रीति-रिवाजों के साथ प्रकृति के देवता की पूजा की और आदिवासी वेशभूषा में जाहेरथान पहुंचकर अपनी श्रद्धा अर्पित की. इस मौके पर चंपाई सोरेन ने कहा कि बाहा पर्व आदिवासी समाज की अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को प्रकट करने का एक अवसर है, जिसमें वे अपने सृष्टिकर्ता और प्रकृति के देवताओं के प्रति आभार व्यक्त करते हैं. इस पर्व का मुख्य उद्देश्य समुदाय के बीच सामंजस्य, सहयोग और एकता को बढ़ावा देना है.

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चंपाई सोरेन का बाहा पर्व के महत्व पर जोर, आदिवासी संस्कृति की रक्षा पर ध्यान

चंपाई सोरेन ने इस पर्व के दौरान अपने विचार साझा करते हुए कहा कि आदिवासी समाज के लोग अपने पारंपरिक पुजारियों के मार्गदर्शन में देवताओं को अर्पित फूलों से पूजा करते हैं और समृद्धि की कामना करते हैं. उन्होंने कहा कि आदिवासियों का इतिहास समृद्ध और गौरवशाली रहा है, जिसमें उनके धार्मिक स्थल देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं. वहीं, चंपाई सोरेन ने 23 मार्च को संथाल के पावन धरती से उलगुलान का आह्वान किया, जहां वे बांग्लादेशी घुसपैठ और धर्मांतरण जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाएंगे. उन्होंने कहा कि इन मुद्दों ने झारखंड के आदिवासी समाज को लगातार ठगा है, और अब वे जन आंदोलन के माध्यम से इन समस्याओं का समाधान करेंगे.

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आदिवासी समाज के अस्तित्त्व की रक्षा के लिए चंपाई सोरेन ने शुरू किया जन आंदोलन

चंपाई सोरेन ने अपने बयान में यह भी कहा कि जब से उन्होंने मुख्यमंत्री की कमान संभाली है, उन्होंने राज्य के सभी पवित्र धार्मिक स्थलों को एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनाई. इसका परिणाम यह है कि आज झारखंड के जाहेरथान और जाहेरगढ़ जैसे धार्मिक स्थल प्राकृतिक सौंदर्यता से भर गए हैं. उन्होंने आदिवासियों के इतिहास और उनके धार्मिक स्थलों की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि इन स्थलों की मान्यता केवल झारखंड ही नहीं, बल्कि पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल में भी प्रचलित है.

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