फतेह लाइव, रिपोर्टर.
सोहराय पर्व कार्यक्रम
बाहा पूजा के बाद आदिवासी समाज का सबसे बड़ा और पवित्र पूजा गोट बोंगा यानि सोहराय पर्व को माना जाता है और यह 30 अक्टूबर से शुरू होगा। यह लगातार पांच दिनों तक चलता रहेगा। कार्तिक अमावस्या के दिन सामुहिक रूप से विभिन्न गाँव के नायके बाबा (पुजारी) द्वारा अपने अपने गाँव में गोट पूजा कर इस महोत्सव की शुरुआत की जाती है।
इसके बाद गाँव के लोगों द्वारा प्रसाद के रूप से सोड़े का ग्रहण किया जाता है। शहरी क्षेत्र के आदिवासी गांव करनडीह, सारजमदा, हलुदबनी, परसुडीह, तालसा, काचा, मातलाडीह, देवघर, बारीगोड़ा, शंकरपुर, गोड़ाडीह, राजदोहा आदि में अभी से ही सोहराय पर्व की तैयारियां चल रही है, जहाँ गाँव के पुरुष बाजारों से आवश्यक सामान खरीदने में लगे हुए हैं तो वही गाँव की महिलाएं अपने अपने घरों की दिवारों में लिपाई पुताई व रंगाई के साथ साथ विभिन्न प्रकार की कलाकृति बनाने में व्यस्त हैं।
सुंदर और आकर्षक कलाकृति बनाने में आदिवासी समाज की महिलाओं को महारत हासिल है और छोटी छोटी बच्चियाँ भी अपनी माँ का साथ देते नज़र आती हैं, जो उनकी कारीगरी देख साफ पता चलता है।
सारजमदा निदिरटोला के नायके बाबा यानि पुजारी पलटन हेम्ब्रम ने बताया कि फसल की अच्छी पैदावार होने के बाद सभी किसान सोहराय पर्व के माध्यम से अपने अपने गाय और बैलों की पूजा करते हैं और उनके सिगों में तेल लगाया जाता हैं और महिलाएं चुमावन करती हैं। यह सोहराय पर्व किसान का गाय बैलों के साथ आपसी प्रेम को भी दर्शाने का प्रतीक माना जाता है।
गाँव के आदिवासी युवा राजेश मार्डी ने कहा कि इस सोहराय पर्व का आदिवासी समाज बेसब्री से इंतजार करते हैं। महिला तथा पुरुष सभी साफ सुथरे पारंपरिक परिधान (फुटा काचा / साड़ी) में रहते हैं और पांच दिनों तक चलने वाला यह सोहराय महोत्सव बड़ी धूमधाम, आपसी भाईचारा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर हड़िया (पेय पदार्थ) का भी सेवन किया जाता है और सभी खुशियाँ मनाते हैं।
पर्व के कार्यक्रम पर एक नजर
30 अक्टूबर – उम नाड़का
31 अक्टूबर – गोट बोंगा
01 नवंबर – दाकाय माहा
02 नवंबर – आड़ाअ् माहा
03 नवंबर – जाजले माहा