- 25 जून 1975 को याद कर लोकतंत्र की रक्षा का संकल्प, भाजपा ने ‘काला दिवस’ के रूप में मनाया
- लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्षरत रहना हर पीढ़ी की जिम्मेदारी
फतेह लाइव, रिपोर्टर
25 जून 1975 भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक ऐसा दिन है जिसे आज भी ‘काला दिवस’ के रूप में याद किया जाता है. इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर संविधान की मूल भावना, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और प्रेस की आज़ादी को सत्ता के बल पर रौंद दिया था. भाजपा नेता अमरप्रीत सिंह काले ने इस अवसर पर कहा कि आपातकाल केवल राजनीतिक कदम नहीं था, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा के साथ किया गया सीधा विश्वासघात था. उन्होंने कहा कि सत्ता के नशे में डूबी सरकार ने असहमति की हर आवाज को जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया.
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आपातकाल की घोषणा: सत्ता बचाने की कोशिश या लोकतंत्र का दमन?
अमरप्रीत सिंह ने कहा कि उस दौर में लाखों लोगों को बिना किसी आरोप के जेल में डाल दिया गया, प्रेस पर सेंसरशिप थोप दी गई और न्यायपालिका को दबाने का प्रयास किया गया. उन्होंने जबरन नसबंदी जैसे दमनकारी फैसलों को अमानवीय करार दिया. उनका कहना था कि यह इतिहास हमें यह सिखाता है कि जब सत्ता में बैठे लोग निजी स्वार्थ में संविधान को दरकिनार करते हैं, तब लोकतंत्र को गहरा आघात पहुंचता है. भाजपा हर साल इस दिन को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाकर देश को याद दिलाती है कि लोकतंत्र को बनाए रखना केवल सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है.
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न्यायपालिका और प्रेस की स्वतंत्रता पर कैसे हुआ था हमला
भाजपा नेता ने कहा कि आज जब भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनकर उभर रहा है, तब यह जरूरी है कि हम उस समय को न भूलें जब लोकतंत्र खतरे में था. उन्होंने उन लोगों को नमन किया जिन्होंने आपातकाल के खिलाफ आवाज़ उठाई और संविधान की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया. अमरप्रीत सिंह काले ने स्पष्ट कहा कि भाजपा का यह संकल्प है कि वह किसी भी तानाशाही प्रवृत्ति के खिलाफ आवाज उठाएगी और देश में लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत बनाए रखने के लिए सदैव संघर्षरत रहेगी.