केदार दास, गोपेश्वर लाल, दीनानाथ पांडेय, टीकाराम माझी जैसे मजदूर लीडरों ने कायम की थी मिसाल
लंबे अरसे से प्रमुख राजनीतिक दलों ने ट्रेड यूनियन लीडरों को नहीं दिया चुनाव लड़ने के लिए टिकट
टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टिनप्लेट समेत कई कंपनियों के प्रभावी मजदूर नेताओं ने नहीं छोड़ी आस
चरणजीत सिंह.
टाटानगरी को मजदूरों का शहर कहा जाता है। टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टिमकेन, टाटा कमिंस, टाटा स्टील का वायर डिवीजन, टिनप्लेट डिवीजन, लाफार्ज, टाटा पावर, जुस्को समेत अनेक कंपनियां हैं। आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में तकरीबन एक हजार छोटे बड़े कारखाने हैं। जाहिर है, इतनी कंपनियां हैं तो मजदूर भी होंगे। चौंकाने वाला पहलू यह है कि लंबे अरसे से प्रमुख राजनीतिक दलों ने ट्रेड यूनियन लीडर या मजदूर नेताओं को लोकसभा या विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाना फायदेमंद नहीं समझा है। हालांकि, पूर्व में केदार दास, गोपेश्वर लाल, दीनानाथ पांडेय, टीकाराम माझी समेत अनेक मजदूर लीडरों को सदन में जाने का मौका मिला है।
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आम राजनीति में उन लोगों ने गहरी छाप भी छोड़ी है। इसके बाद राजनीतिक दल मजदूर नेताओं को भूल गए। हां, चुनाव की घड़ी नजदीक आती है तो अलग-अलग दलों के उम्मीदवार समर्थन पाने की लालसा में मजदूर नेताओं के यहां हाजिरी जरूर बजाने जाते हैं, उन्हें लुभाते हैं, बेहतर भविष्य के सपने दिखाते हैं। झारखंड में विधानसभा चुनाव सर पर है। कभी भी चुनाव आयोग इसका ऐलान कर सकता है। ऐसी परिस्थिति में अलग-अलग ट्रेड यूनियन से जुड़े नए-पुराने दिग्गज इधर-उधर जुगाड़ लगाने लगे हैं कि शायद मौका मिल जाय।
टिनप्लेट, तार कंपनी, जेम्को, टाटा पावर, लाफार्ज समेत दो दर्जन से अधिक कंपनियों की ट्रेड यूनियन की अगुवाई करने वाले राकेश्वर पांडेय की गिनती घाघ नेताओं में होती है। उनका बड़ा समर्थक वर्ग है। विधानसभा चुनाव आता है तो राकेश्वर पांडेय कांग्रेस के टिकट के लिए अनायास दावेदार के तौर पर उभर जाते हैं। इस बार भी कांग्रेस के टिकट के लिए वे गंभीर चेहरा है।
जुस्को की जुस्को श्रमिक यूनियन के अध्यक्ष रघुनाथ पांडेय लंबे समय तक टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष रह चुके हैं। जब भी विधानसभा चुनाव आता है, जमशेदपुर पूर्वी से कांग्रेस के टिकट के लिए उनका नाम उछल जाताहै।
टाटा वर्कर्स यूनियन के पूर्व अध्यक्ष पीएन सिंह को चाहने वाला मजदूरों का बड़ा वर्ग है। उन्हें मजदूरों के हक के लिए प्रबंधन से सीधे टकराने से नहीं घबराने वाले चेहरे के तौर पर जाना जाता है। पीएन सिंह का भी नाम टिकट के लिए उछलता रहा है।
देश की बड़ी ट्रेड यूनियन में शुमार टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष संजीव कुमार चौधरी उर्फ टुन्नू चौधरी स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस के टिकट के दावेदारों की श्रेणी में आ जाते हैं।
टाटा वर्कर्स यूनियन के महामंत्री सतीश सिंह भी विधानसभा चुनाव लड़ने की ख्वाहिश रखते हैं। टाटा मोटर्स की मान्यता प्राप्त टाटा मोटर्स वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष गुरमीत सिंह तोते और महामंत्री आरके सिंह ने खुलकर विधानसभा चुनाव में टिकट की दावेदारी नहीं की है। उनके समर्थक जरूर सुगबुगाहट पैदा करते रहते हैं। मजदूर नेताओं के नाम चाहे जितना भी उछलते रहे हो, टिकट की घोषणा होती है तो उन्हें मायूसी ही हाथ लगती रही है।
झारखंड के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए इंडिया और एनडीए गठबंधन खूब ठोंक बजाकर प्रत्याशी उतारने के प्रयास में है। उभय पक्ष को पता है कि इस बार का चुनावी मुकाबले टी-ट्वेंटी के तर्ज पर आखिरी गेंद तक जाएगी। इसलिए मजदूर नेताओं को लगने लगा है कि शायद भाग्य खुल जाय। सबसे अहम। कांग्रेस जिलाध्यक्ष आनंद बिहारी दुबे भी ट्रेड यूनियन की राजनीति में घुस चुके हैं। गोविंदपुर की मेसर्स स्ट्रीप्स व्हील्स कंपनी की मान्यता प्राप्त यूनियन के अध्यक्ष है। लंबे समय तक झामुमो की सियासत में रहे। कांग्रेस में आए तो जमशेदपुर पूर्वी से विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका मिल चुका है। वे भी टिकट के प्रबल दावेदार हैं।
यह हैं प्रमुख दावेदार और उनकी खास बात

राकेश्वर पांडेय – टाटानगरी समेत कोल्हान प्रमंडल की मजदूर राजनीति की बात करें तो राकेश्वर पांडेय के बिना वह अधूरी होगी। टाटा स्टील के तत्कालीन प्रबंध निदेशक डॉ जेजे ईरानी को वह डैडी कहते थे। डॉ जेजे ईरानी ने भी उन्हें पुत्रवत स्नेह दिया। उनके आशीर्वाद से राकेश्वर पांडेय का सितारा बुलंद होता गया। उन्होंने खुद भी मजदूर राजनीति की बारीकियों का गहराई से अध्ययन किया। कारपोरेट और मजदूर जगत की अपेक्षा के बीच संतुलन साधने में ऐसी महारथ हासिल की है कि न प्रबंधन उन्हें अपनी यूनियन से हटाना चाहता है न ही मजदूर। वे झारखंड इंटक के अध्यक्ष भी है। जमशेदपुर पूर्वी हो या जमशेदपुर पश्चिमी, उनका दोनों तरफ समान प्रभाव है। बिष्टुपुर आवास पर जाइए तो कुछ न कुछ लोग हमेशा मिल जाएंगे। काम हो या नहीं हो, आदर भाव में कमी नहीं दिखेगी। राकेश्वर पांडेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र बनारस के रहने वाले हैं। जरूरत हुई तो बनारसी अंदाज अपनाने से भी उन्हें गुरेज नहीं। कांग्रेस और इंटक में दिल्ली दरबार तक उनकी पहुंच है। वो भी बहुत तगड़ी। साम, दाम, दंड और भेद के फन में भी माहिर है। कांग्रेस के टिकट के दावेदारों की सूची में उनका नाम आगे भी बढ़ा है। ब्राह्मण बिरादरी से आने वाले राकेश्वर पांडेय इसलिए भी मजबूत दिखते हैं कि जमशेदपुर पूर्वी में ब्राह्मण मतदाता प्रभावी संख्या में है। उनके समर्थकों को उम्मीद है कि इस बार मौका मिल सकता है।
विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा है
झारखंड में विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा अवश्य है। यह मजदूरों का शहर है। पूरे झारखंड में खनिज के खदान है। वहां भी लाखों मजदूर हैं। मजदूरों का लोकसभा और विधानसभा में प्रतिनिधित्व होना चाहिए। वर्तमान केंद्र सरकार ने श्रम कानूनों में संशोधन कर इसे नख और दंत विहीन बनाने का काम किया है। ऐसी परिस्थिति में अब सर्वोच्च सदन में मजदूर प्रतिनिधि का होना और भी प्रासंगिक हो चुका है। जहां तक इंटक की दावेदारी का सवाल है तो बेरमो, धनबाद, बोकारो, जमशेदपुर पूर्वी, जमशेदपुर पश्चिमी और गढ़वा सीट पर इंटक से जुड़े लोगों को उम्मीदवार बनाना चाहिए। वे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से मिल कर इसके लिए अनुरोध भी करेंगे। राकेश्वर पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष, झारखंड इंटक.

रघुनाथ पांडेय – कभी परदे के पीछे से शांतचित्त होकर ट्रेड यूनियन की राजनीति करने वाले रघुनाथ पांडेय की विशेषता उनका मिलनसार स्वभाव है। सिर्फ इसी खासियत के कारण वे टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब हो सके। टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष रहते रघुनाथ पांडेय का प्रभाव इतना बढ़ता गया कि लोग उन्हें भविष्य के सांसद और विधायक के तौर पर देखने लगे थे। उनके व्यक्तिगत समर्थकों की टोली हजारों में पहुंच गई थी। हर कोई उनका मुरीद दिखने लगा था। किसी सांसद या विधायक की तुलना में उनके कार्यालय और आवास पर जुटने वाले लोगों की संख्या कहीं अधिक होती थी। पुरानी कहावत है, शीर्ष पर पहुंचने के बाद वहां टिके रहना कहीं अधिक कठिन होता है। रघुनाथ पांडेय का पतन हुआ। इसके बाद उन्होंने जुस्को श्रमिक यूनियन की कमान संभाल ली। अभी भी रघुनाथ पांडेय रोजाना लोगों से मिलते हैं, आदर भाव में कोई कमी नहीं होती। दरवाजे पर जाइए तो मिष्टान हाजिर है। जमशेदपुर पूर्वी और जमशेदपुर पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र में उन्हें चाहने वाले कम नहीं है। रघुनाथ पांडेय ब्राह्मण है। जमशेदपुर पूर्वी में ब्राह्मण इतनी संख्या में जरूर है कि चुनाव पर गहरा असर डाल सके। रघुनाथ पांडेय की दावेदारी के प्रबल होने का बड़ा कारण यह भी है।
जमशेदपुर पूर्वी में अवश्य दिखाएंगे दमखम
कोल्हान मजदूरों का प्रमंडल है तो टाटानगर मजदूरों का शहर। यहां संगठित कर्मचारी है तो असंगठित मजदूर भी। वे एकजुट होकर मतदान करे तो फिर उनकी मर्जी ही चलेगी। वे इंटक से जुड़े हुए हैं। जमशेदपुर पश्चिम से कांग्रेस के ही विधायक हैं। वहां किसी को भी दावेदारी नहीं करनी चाहिए। जमशेदपुर पूर्वी से मौका मिले तो जरूर दमखम दिखाएंगे। पूरा यकीन है कि जमशेदपुर पूर्वी पर जरूर विजयश्री हासिल होगी। इतिहास की बात करे तो इंटक से शमसुद्दीन खान विधायक चुने गए थे। उन्होंने बेहतरीन काम किया था। अगर उन्हें चुनाव लड़ने के बाद विधायक बनने का अवसर मिला तो लंबी लकीर अवश्य खीचेंगे। रघुनाथ पांडेय, अध्यक्ष, जुस्को श्रमिक यूनियन।

पीएन सिंह – पीएन सिंह टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष रहे हैं। उनकी पहचान ऐसे मजदूर लीडर के तौर पर है जो मजदूरों के हक के लिए कंपनी प्रबंधन से सीधे टकराने का साहस रखते हैं। खासियत यह भी रही है कि कंपनी के उत्थान, उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने में भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने का कोई मौका जाया नहीं करते। यूं कहा जाय कि उनकी राजनीति करने का अंदाज 40 से 50 दशक पुराना रहा है। बात सच्ची हो तो सार्वजनिक तौर पर भी खरी खरी सुनाने में गुरेज नहीं। अगर कुछ खुद से गलत हो गया तो सार्वजनिक तौर पर सुनने से भी परहेज नहीं। वास्तविकता चाहे जो हो, मजदूरों में आम मान्यता है कि प्रबंधन के मन मुताबिक नहीं चलने के कारण पीएन सिंह को ट्रेड यूनियन की राजनीति से बाहर जाना पड़ा। इससे भी कोई इनकार नहीं कर सकता कि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली की तरह टाटा स्टील के कर्मचारियों को सीधे मतदान का मौका मिलता तो पीएन सिंह को कुर्सी से हिलाना मुश्किल होता। पीएन सिंह की प्रशंसकों की बड़ी संख्या को देख हरेक लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उनका समर्थन हासिल करने के लिए अलग अलग दलों के उम्मीदवार उनके दरवाजे पर आते रहे हैं। जो सही लगा, उसका वे समर्थन करते है या खुल कर विरोध। उनके समर्थक हरेक बार उन्हें टिकट के प्रबल दावेदार के तौर पर पेश करते रहे हैं। जानते भी हैं कि आज के जमाने में ऐसे लीडर को मौका मिलना सचमुच बेहद मुश्किल है।
चुनाव खर्चीला, मजदूरों से मांगना होगा
इंटक या किसी भी मजदूर संगठन का दायरा सीमित होता है। झारखंड में राजेंद्र बाबू, समरेश सिंह, एके राय जैसे कुछ ऐसे बड़े व्यक्तित्व रहे हैं जिन्होंने मजदूर राजनीति करते हुए आम राजनीति में भी लंबी लकीर खींची है। जमशेदपुर, धनबाद, बोकारो ऐसे शहर हैं, जहां कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दलों को मजदूर प्रतिनिधियों को मौका देना चाहिए। वैसे लोकसभा या विधानसभा की बात छोड़िए, अब तो मुखिया का चुनाव लड़ना इतना खर्चीला हो चुका है कि पूछिए मत। चुनाव इतना खर्चीला होगा तो भ्रष्टाचार कभी नहीं रूक सकता। चुनाव लड़ने को पैसा चाहिए। अगर उन्हें टिकट मिलता है तो मजदूरों से ही पैसा मांगना पड़ेगा और कोई चारा नहीं है। पीएन सिंह, पूर्व अध्यक्ष, टाटा वर्कर्स यूनियन।

संजीव चौधरी – संजीव चौधरी उर्फ टुन्नू चौधरी फिलहाल टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष है। वे इंटक के राष्ट्रीय पदाधिकारी भी हैं। टाटा वर्कर्स यूनियन के सदस्यों की संख्या तकरीबन 12 हजार है। देश की बड़ी यूनियन का नेतृत्वकर्ता होने के नाते वे विधानसभा चुनाव के टिकट के लिए स्वाभाविक चेहरा है। राजनीति में नौसिखिया नहीं है। उन्हें ट्रेड यूनियन की सियासत का हुनर विरासत में मिला है। टुन्नू चौधरी व्यक्तिगत तौर पर मिलनसार स्वभाव के हैं। समर्थक हो अथवा विरोधी, सब इस बात को मानते हैं कि कोई इंसान कुछ देर के लिए टुन्नू चौधरी के बैठ जाएगा तो कुछ देर के लिए ही सही, उनका मुरीद हो जाएगा। जुबान में मोहिनी है। हां, कोई परदे के पीछे से विरोध कर रहा है तो इसी मोहिनी से विरोधी को इस कदर काटते हैं कि इससे होने वाले दर्द की दवा भी आसानी से नहीं मिलती। वे भूमिहार बिरादरी से आते हैं। स्वजातीय लोगों में टुन्नू का प्रभाव अच्छा खासा है। जमशेदपुर पूर्वी में भूमिहार आबादी की संख्या भी अच्छी खासी है। संजीव चौधरी की इंडिया के साथ एनडीए गठबंधन के प्रमुख नेताओं के साथ बेहतर रिश्ते भी हैं। यह भी उनके लिए उम्मीद जगाता है। यद्यपि, टुन्नू चौधरी ने अभीतक साफ नहीं किया है कि वे विधानसभा चुनाव के लिए टिकट के लिए दावा करेंगे अथवा नहीं। ऐसा लगता है कि अभी वे तेल देखो, तेल की धार देखो वाली नीति का अनुसरण कर रहे हैं।

सतीश सिंह – मजदूर राजनीति में कोई चेहरा अचानक तेजी से उभरा है तो वो सतीश सिंह है। कभी टुन्नू चौधरी के शार्गिद थे। टाटा वर्कर्स यूनियन में टुन्नू चौधरी को पहली बार अध्यक्ष बनाने में सतीश सिंह का बडा योगदान रहा। अब सतीश सिंह सियासी शतरंज के इतने दांव अवश्य सीख चुके हैं कि कभी गुरू रहे टुन्नू को उनसे हर पल सावधान रहना पड़ रहा है। टुन्नू जहां महीन राजनीति करते हैं तो सतीश का अंदाज खुल्लमखुल्ला दोस्ती और दुश्मनी निभाने वाला है। टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष रहे आरबीबी सिंह से उन्होंने साहस का गुण सीखा तो रघुनाथ पांडेय से मिलनसार की सीख ली। पीएन सिंह यूनियन अध्यक्ष बने तो उनसे मजदूरों से जुड़े कानून, कंपनी एवं किसी समझौता में ट्रेड यूनियन के दांव पेंच को सीखने का प्रयास किया। वे इसे सार्वजनिक तौर पर स्वीकारते भी हैं कि कोई मां के पेट से सब कुछ सीख कर नहीं आता। सतीश सिंह को सत्ता पक्ष में रहते हुए भी विपक्ष की राजनीति करने से गुरेज नहीं है। उनकी यही अदा कर्मचारियों को पसंद भी आती रही है। इससे इतर उन्होंने टाटा स्टील के कर्मचारियों की बाबा धाम यात्रा शुरू कराई। देखादेखी और ट्रेड यूनियनों में भी यह प्रारंभ हो गया। इसी के जरिए उन्होंने शहर के आम नागरिकों से भी रिश्ता जोड़ने का प्रयास किया है। हरेक राजनीतिक दलों के छोटे बड़े नेताओं से उनके व्यक्तिगत रिश्ते भी हैं। सतीश सिंह को अहसास है कि ट्रेड यूनियन से इतर आम राजनीति उतनी आसान नहीं है। इसके बावजूद उन्हें यकीन है कि चुनाव लड़ने का मौका मिला तो छक्का मार देंगे।
टिकट मिला तो जीत की पक्की गारंटी
बेरोजगारी राष्ट्रीय मुद्दा है, प्रादेशिक भी। श्रम कानून किस कदर कमजोर किए जा चुके हैं, यह भी छिपा हुई बात नहीं है। चुनावी मंच से यह बात जोर जोर से सुनाई देती है। उतनी ही शिद्दत से यह बात सदन में सुनाई नहीं देती। सदन में मजदूरों की बात तभी कायदे से उठेगी जब वहां मजदूर संगठन के प्रतिनिधि होंगे। जमशेदपुर शहर में किसी भी राजनीतिक दल को टिकट का निर्धारण करते वक्त मजदूर प्रतिनिधि होने को भी आधार बनाना चाहिए। राकेश्वर पांडेय और रघुनाथ पांडेय को पहला मौका मिलना चाहिए। अगर उन दोनों को अवसर नहीं मिले तो स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस से टिकट की अपेक्षा रखेंगे। दावा नहीं किए हैं। इतना जरूर है कि टिकट मिलता है तो जीत की गारंटी पक्की है। सतीश सिंह, महामंत्री, टाटा वर्कर्स यूनियन

गुरमीत सिंह तोते – गुरमीत सिंह तोते टाटा मोटर्स वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष हैं। टाटा मोटर्स की यूनियन में तोते का कद उस वक्त अचानक बहुत बढ़ गया जब सत्ता विरोधी आंधी में उनके साथ के सभी कमेटी मैम्बर चुनाव हार गए थे। हारने वालों में यूनियन के उस वक्त के शक्तिशाली महामंत्री चंद्रभान सिंह भी थे। अकेले तोते ही सत्तारूढ़ खेमा से चुनाव में विजयश्री हासिल किये थे। बकौल तोते, शायद वाहेगुरु का आशीर्वाद तभी उनपर बना था. 2025 के मार्च में तोते टाटा मोटर्स से सेवनिवृत होने वाले हैं. वह कहते हैं कि उन्हें गर्व महसूस होता है कि इतने चेहरों में एक पगड़ी वाला सिख इतनी बड़ी पदवी पर बैठा है. यह पूरे समाज के लिए गर्व की बात है. तोते ट्रेड यूनियन में 2004 से जुड़े थे। आज यूनियन का नेतृत्व कर रहे हैं। गुरमीत सिंह तोते के समर्थक उनके कार्यकाल की ढेरों उपलब्धि गिनाते है। तोते से पूछिये तो उनकी जुबान से यही निकलता है कि जनवरी 2024 में 2700 कर्मचारियों को स्थाई करने वाली लिस्ट में उनके भी हस्ताक्षर हैं। यही बड़ी उपलब्धि हैं. वो इंटक में प्रदेश सचिव का दायित्व भी संभाल रहे हैं।
रघुनाथ को टिकट मिला तो अधिक खुशी होगी
झारखंड में इंटक सबसे बड़ा और सर्वाधिक प्रभावशाली ट्रेड यूनियन है। जमशेदपुर मजदूरों का शहर है। टाटा समूह की कंपनियों में काम करने वाले दीनानाथ पांडेय, मृगेंद्र प्रताप सिंह, शमसुद्दीन खान, मंगल राम, रघुवर दास को इस इलाके के प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है। उन्होंने खुद को साबित भी किया है। रघुनाथ पांडेय जमशेदपुर पूर्वी से कांग्रेस के टिकट के लिए प्रयासरत हैं। अगर उन्हें टिकट मिलता है तो बहुत खुशी होगी। उनका भरपूर समर्थन किया जाएगा। इंटक से किसी और को भी मौका मिलता है तो बढ़िया बात होगी। जहां तक टाटा मोटर्स की बात है तो 77 साल में पहली बार किसी सिख को यूनियन अध्यक्ष बनने का मौका मिला है। यही गर्व की बात है। अगर कोई आगे आकर विधानसभा चुनाव लड़ने का टिकट देता है तो स्वागत है। गुरमीत सिंह तोते, अध्यक्ष, टाटा मोटर्स वर्कर्स यूनियन।

आरके सिंह – इंटक के दिग्गज लीडर स्वर्गीय राजेंद्र सिंह की टेल्को वर्कर्स यूनियन में हार होने के बाद टाटा मोटर्स की ट्रेड यूनियन की सियासत में लगातार उतार चढ़ाव आते रहे। हर्षवर्धन सिंह ने एकबारगी टाटा मोटर्स के कर्मचारियों पर जादू कर दिया था। उनका जलवा बरकरार नहीं रह पाया। ट्रेड यूनियन के भीतर मची धमाचौकड़ी थमी तो आरके सिंह के रूप में ऐसा चेहरा उभर कर सामने आया जिसने अंगद की तरह पांव जमा लिए हैं। टाटा मोटर्स प्रबंधन से लेकर यूनियन के भीतर आरके सिंह ने ऐसी पैठ बना ली है, कि उनकी कुर्सी हिलाना मुश्किल दिखता है। वे मूल रूप से आजमगढ़ के रहने वाले हैं। यूं भी उत्तर प्रदेश को राजनीति की उर्वरा भूमि कहा जाता है। वहां की राजनीति के सारे दांव पेंच को आरके सिंह ने बेहद सलाहियत के साथ इस्तेमाल किया। कुछ सालों के भीतर आरके सिंह ने मजदूर राजनीति में खुद को मजबूती स्थापित कर लिया है। अब आरके सिंह का झंडा उठाने वाला, उनके लिए नारे लगाने वाला बड़ा मजदूर वर्ग तैयार हो चुका है। वे जहां चाहे, उनके समर्थक जाने को तैयार है।
इंटक से जिसे भी टिकट, उसे समर्थन
पूरा भारत जानता है कि जमशेदपुर मजदूरों का शहर है। टाटा समूह की कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों को प्रतिनिधित्व करने का मौका भी मिला है। हां, प्रत्यक्ष तौर पर ट्रेड यूनियन या मजदूर राजनीति करने वाले को लंबे समय से किसी भी राजनीतिक दल ने उम्मीदवार नहीं बनाया है। ट्रेड यूनियन लीडरों पर राजनीतिक दलों को भरोसा दिखाना चाहिए। यहां अधिकतर ट्रेड यूनियन इंटक की है। इंटक से जुड़े किसी भी लीडर को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिलता है तो वे भरपूर समर्थन करेंगे। स्पष्ट मत है कि टिकट जिसे भी मिलता है, सबको तन, मन, धन से सहयोग करना चाहिए। एक बार रास्ता खुल जाएगा तो आगे के लिए बढ़िया होगा। वे खुद आगे बढ़कर अपने लिए टिकट की दावेदारी नहीं करेंगे। आरके सिंह, महामंत्री, टाटा मोटर्स वर्कर्स यूनियन

परविंदर सिंह सोहल – परविंदर सिंह सोहल को ट्रेड यूनियन की राजनीति में आने की प्रेरणा गोपेश्वर बाबू से मिली। वही गोपेश्वर लाल जिनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर के मजदूर नेताओं में रही है। वे टिनप्लेट वर्कर्स यूनियन का नेतृत्व कर रहे थे तो परविंदर सिंह सोहल ने कमेटी मेंबर बनने के लिए पहला चुनाव लड़ा था। तकरीबन 30 साल गुजर चुके हैं। परविंदर सिंह सोहल का सफर थमा नहीं है। परविंदर सिंह की हमेशा कोशिश रही कि गोपेश्वर लाल से जो कुछ सीख सकते हैं, जरूर सीखें। गोपेश्वर बाबू के बाद परविंदर सिंह सोहल ने लंबे समय तक झारखंड इंटक के अध्यक्ष राकेश्वर पांडेय के नेतृत्व में मजदूर आंदोलन को आगे बढ़ाने का काम किया। वे टिनप्लेट वर्कर्स यूनियन के डिप्टी प्रेसीडेंट हैं। और भी कुछ यूनियनों से जुड़े हुए हैं। झारखंड इंटक में भी पदाधिकारी हैं और जिला कांग्रेस कार्यसमिति में भी सचिव। इससे इतर सेंट्रल गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी से भी परविंदर सिंह शिद्दत से जुड़े हुए हैं। वहां की राजनीति से खुद को दूर रखने की कोशिश रहती है। धार्मिक और सामाजिक मामले में परविंदर अपनी सक्रियता में कमी नहीं दिखाते। वह अपने इस सफर में कई यूनियन और गुरुद्वारों में चुनाव करा चुके हैं। मृदुभाषि स्वाभाव के कारण उन्हें लोग पसंद करते हैं।विधानसभा चुनाव अभी आने वाला है। वे सालों से हर उचित फोरम पर आवाज उठाते रहे हैं कि झारखंड के जिन विधानसभा क्षेत्रों में मजदूरों की संख्या अधिक है, वहां इंटक को मौका मिलना चाहिए। अभी भी यही बात दोहरा रहे हैं।
कांग्रेस नेतृत्व से कई बार खुलकर पैरवी की
झारखंड में जमशेदपुर, धनबाद और बोकारो मजदूरों के शहर हैं। तीनों जिलों में संगठित और असंगठित क्षेत्र के लाखों मजदूर हैं। अभी सिर्फ बेरमो ही ऐसी सीट है जहां इंटक लीडर अनूप सिंह को मौका मिला है। तीनों जिलों की विधानसभा सीटों पर इंटक का पहला हक बनता है। जहांतक जमशेदपुर की बात है तो जमशेदपुर पूर्वी और जमशेदपुर पश्चिम से किसी मजदूर नेता को ही टिकट दिया जाना चाहिए। वे पहले भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से मिल कर मजदूर नेता को टिकट देने की पैरवी कर चुके हैं। लिखित में भी यह मांग की जा चुकी है। अगर इंटक के किसी लीडर को टिकट मिलता है तो सारे लोग मिल कर भरपूर समर्थन करेंगे। परविंदर सिंह सोहल, डिप्टी प्रेसिडेंट, टिनप्लेट वर्कर्स यूनियन।
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