एनएस ग्रेड से पहली बार आफिस बेयरर बने संजीव तिवारी का सामने आया दर्द
कर्मचारी खामोश हैं तो इसका यह मतलब नहीं लगाएं कि वे बोलना नहीं चाहते
अगर वेज रिवीजन में नए कर्मचारियों का भला न हुआ तो न हम रहेंगे न वो
चरणजीत सिंह.
टाटा स्टील में न्यू सिरीज (एनएस) ग्रेड में संजीव तिवारी पहले ऐसे कर्मचारी हैं, जो टाटा वर्कर्स यूनियन में आफिस बेयरर बने थे। उसके बाद लगातार आफिस बेयरर का चुनाव जीत रहे हैं। फिलवक्त यूनियन उपाध्यक्ष हैं। धनतेरस पर माइकल जॉन आडिटोरियम में हुई टाटा वर्कर्स यूनियन की कमेटी मीटिंग में संजीव तिवारी ने मन की बात कही। उनके संबोधन में न राजनीति का भाव था, न किसी को लुभाने, रिझाने या चापलूसी की मंशा। वेज रिवीजन में एनएस ग्रेड के कर्मचारियों की अपेक्षा का जिक्र करते हुए वो भावुक हो गए, जुबान लड़खड़ा गई। आखिरकार उनके मुंह से सच सामने आ गया।
टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष संजीव चौधरी उर्फ टुन्नू को संबोधित करते हुए बोले कि यदि आप लोगों ने इस बार के वेज रिवीजन में भी एनएस ग्रेड के लिए सही नहीं किया तो हो सकता है कि आप लोगों को दिक्कत नहीं हो, जात पात के आधार पर दोबारा चुन लिए जाय तो भी एनएस कर्मचारियों की आह जरूर लगेगी। इशारे में उन्होंने बगावती तेवर भी दिखाते हुए कहा कि अब कारखाना में 65 फीसद से अधिक एनएस कर्मचारी हैं। इसके बावजूद उनके वेतनमान में सुधार के लिए सही समझौता नहीं किया गया, तो न हम ही रहेंगे न आप ही। उनका इशारा मंच पर बैठे यूनियन अध्यक्ष की ओर था।
संजीव तिवारी बोले कि एनएस कर्मचारियों के लिए यह निर्णायक वेज समझौता है। इससे पहले रघुनाथ पांडेय, पीएन सिंह और आर रवि प्रसाद ने ग्रेड समझौता किया था। उस वक्त स्टील ग्रेड के कर्मचारियों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक थी। तत्कालीन यूनियन अध्यक्षों ने इस तथ्य को ध्यान में रखा था। अब यह अनुपात बदल चुका है।
प्रस्तावित वेज समझौता की अवधि समाप्त होगी। तब तक कारखाना में एनएस कर्मचारियों की संख्या शायद 90 फीसद हो जाएगी। अब तो उन पर गौर कीजिए। कलिंगानगर में बिना यूनियन के वेज समझौता हुआ। एनएस कर्मचारियों से तुलना करे तो यहां से बेहतर हुआ। उन्होंने कहा कि यूनिफार्म ग्रेड स्ट्रक्चर का समझौता किया गया। उससे स्टील ग्रेड के कर्मचारियों को थोड़ा बहुत लाभ हुआ। अगर यही समझौता डिपार्टमेंट स्तर पर कमेटी मेंबर करते तो इससे सारे कर्मचारियों को लाभ होता।
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यूनियन में जातिवाद की गूंज शीर्ष प्रबंधन तक भी
टाटा वर्कर्स यूनियन के कार्यालय में जाइए, किसी से थोड़ी देर के लिए गुफ्तगू कीजिए तो जात पात की बात जरूर निकल आएगी। कोई न कोई अवश्य फुसफुसाता मिल जाएगा कि यूनियन में पहले भी जातिवाद था। अब इतना अधिक हो चुका है कि पूछिए मत। तुरंत कोई न कोई जानकारी दे देगा कि अध्यक्ष टुन्नू चौधरी के स्वजातीय भूमिहार कमेटी मेंबरों की संख्या सबसे अधिक है।
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इसके बाद पिछड़ों का नंबर आएगा। इसमें भी कुर्मी और यादव सब पर भारी है। फिर राजपूत और ब्राह्मण की बारी आएगी। अमुक जाति के लोग एकजुट हैं, अमुक बिखर रहे हैं, फलानां जाति के कमेटी मेंबरों को तोड़ने में सब लगे हुए हैं आदि आदि। वास्तव में मजदूरों की अपनी अलग जाति होती है, यह बात यूनियन के भीतर बिल्कुल खत्म प्रतीत होगी, सच चाहे जो कुछ हो। सिर्फ यूनियन कार्यालय ही नहीं, टाटा वर्कर्स यूनियन में जातिवाद के हावी होने की गूंज टाटा स्टील के शीर्ष प्रबंधन तक है।
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