कौमी सिख मोर्चा के अध्यक्ष अधिवक्ता कुलविंदर सिंह ने कहा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार सुधार के नाम पर वकीलों पर सरकारी अंकुश लगाना चाहती है. जिसका देश भर के वकील डटकर विरोध करेंगे.

फतेह लाइव, रिपोर्टर.

कुलविंदर सिंह के अनुसार वकालत एक पवित्र पैसा है और यहां जातिवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद और दलीय राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है. सरकार यदि सोच रही है कि देश के ज्यादातर वकील उनकी विचारधारा से प्रभावित हैं और वे दलीय राजनीति के कारण अधिवक्ता अधिनियम 1961 के संशोधन को स्वीकार कर लेंगे तो यह उसकी गलतफहमी है, क्योंकि अंकुश सभी वकीलों पर लगेगा और उसकी विचारधारा से प्रभावित वकील इसके अपवाद नहीं रहेंगे.

केंद्र की मोदी सरकार आखिरकार क्यों बार काउंसिल ऑफ इंडिया में अपना तीन प्रतिनिधि को शामिल करने का अधिकार प्राप्त करना चाहती है, जबकि वर्तमान में भारत के महान्यायवादी, सॉलिसिटर जनरल और प्रत्येक राज्य बार काउंसिल द्वारा निर्वाचित एक एक सदस्य पदेन सदस्य होते हैं.

इन तीन मनोनीत सदस्यों की बुनियाद पर बार काउंसिल आफ इंडिया का पूरा नियंत्रण अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार अपने हाथ में रखना चाहती है. सरकार संशोधन के माध्यम से बार काउंसिल ऑफ इंडिया को निर्देश देने का अधिकार चाहती है जिसके मार्फत वह अधिनियम नियम को प्रभावी ढंग से लागू कर सके अर्थात वकीलों पर अनुशासनात्मक डंडा लगाकर प्रेक्टिस से बाहर कर सके.

कुलविंदर सिंह के अनुसार लीगल प्रैक्टिशनर के नाम पर वकालत की परिभाषा भी इसके मर्यादा को छोटा करने का प्रयास है.

अधिवक्ता कुलविंदर सिंह ने बार काउंसिल आफ इंडिया की सराहना की है कि इस प्रस्तावित प्रारूप के खिलाफ बैठक आहूत की है, जिससे सरकार इस तरह की तानाशाही की ओर बढ़े कदम को वापस ले सके. सरकार के प्रस्तावित प्रारूप का विरोध करने की जरूरत पड़ी तो देश के सभी वकील बार काउंसिल आफ इंडिया के फैसले के साथ खड़े होंगे.

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