प्रभात खबर प्रबंधन की स्थिति इन दिनों बिना मुखिया वाले परिवार की होकर रह गयी है. एक्सटेंशन पर चल रहे प्रबंधन की कमान ऐसे लोगों के हाथों में है जो सेवाकाल पूरा कर चुके है और उम्र के अंतिम पड़ाव में है. इस उम्र में लोगों में स्वाभाविक रूप से अपनी और परिवार की चिंता अधिक होती है. इसमें कुछ अपवाद भी हैं लेकिन इस तथ्य को पूरी तरह खारिज भी नहीं किया जा सकता. शायद इसी परिकल्पना को आत्मसात कर सरकार व संविधान में सेवानिवृत्ति की एक उम्र निर्धारित की गयी थी.
यह किसी की निजी टिप्पणी नहीं बल्कि अखबार को खून-पसीनें से सींचने वाले उन दिग्गजों की पीड़ा है जो इन दिनों अखबार में प्रबंधन के स्तर पर धकिया दिये गये हैं या यूं कहें उनकी अब किसी भी स्तर पर सुनी नहीं जा रही है. चर्चा है कि पूरा प्रबंधन ढाई टांग पर चल रहा. ऊपर के अहम पदों पर बैठे दो लोग एक्सटेंशन पर हैं तो तीसरा मानव संसाधन का सही और उचित इस्तेमाल करने की जगह उसे ताेड़ने-मरोड़ने, लोगों को परेशान करने और संपादकीय प्रभारियों का एजेंडा फिट करने में व्यस्त है. ऐसे में मनमानी के शिकार लोगों की कौन सुनेगा ? तो क्या यही वजह है कि झारखंड में सबसे अधिक प्रतिभा पलायन के दौर से प्रभात खबर ही गुजर रहा है ?
अगली कहानी प्रभात खबर धनबाद से आ रही है. यहां एक पत्रकार कृष्णाकांत सिंह ने प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए श्रम विभाग का दरवाजा खटखटाया है. यह वह पत्रकार हैं जिन्होंने गिरीडीह से लेकर बोकारो तक प्रभात खबर की पहचान स्थापित करने में न सिर्फ अपना खून-पसीना बहाया बल्कि परिवार का समय काटकर अखबार को दे दिया. लेकिन एक बात पर संपादकीय प्रभारी जीवेश रंजन सिंह से ठन गयी और इनका तबादला बिना कुछ कहे-सुने भागलपुर कर दिया गया. इनका दावा है कि उनके खिलाफ यह कार्रवाई मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन मांगने पर की गयी है. उम्र व सेवाकाल के अंतिम पड़ाव में प्रबंधन से परेशान लोगों के पास मजीठिया वेज बोर्ड बड़ा सहारा बनकर सामने आया है.
चलिये जानते है मजीठिया क्रांतिवीर कृष्णाकांत की कहानी उनकी ही जुबानी…
05 सितंबर 2023. ये महज तारीख नहीं है. इस दिन प्रभात खबर के खिलाफ जंग की बुनियाद रखी गयी थी. क्योंकि इस दिन कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना न तो मैंने कभी की थी, और न ही प्रभात खबर धनबाद (झारखंड) यूनिट ने. लेकिन कहते हैं न कि जो होता है वो अच्छे के लिए होता है. इसलिए उस दिन थोड़ा नहीं, बहुत कुछ बुरा किया गया था मेरे साथ. जानबूझ कर. और यह सब हुआ प्रभात खबर के संपादक जीवेश रंजन सिंह की मेहरबानी से. या यूं कहें कि वो मुझे प्रताड़ित करने के लिए पिछले एक साल से ताना-बाना बुन रहे थे. इसलिए अगर आप पत्रकार हैं और आपका जमीर जिंदा है तो उम्मीद करता हूं कि आप भी मेरी तरह इस हकीकत से रू-ब-रू हो चुके होंगे. क्योंकि किस्सा खत्म नहीं हुआ, अभी तो कहानी शुरू हुई है मेरे दोस्त…
बात वर्ष 2021 की है. इस साल मेरा ट्रांसफर प्रभात खबर रांची से धनबाद यूनिट में किया गया था. मैं भी यही चाहता था. क्योंकि, मेरा परिवार बोकारो में रहता है और मेरे परिवार के तीन सदस्य (माता, पिता और धर्मपत्नी) अस्वस्थ रहते हैं. खासकर मेरी धर्मपत्नी. बहरहाल, ट्रांसफर तो हो गया. उस वक्त धनबाद के वरीय संपादक विजय पाठक थे. उन्होंने मुझे गिरिडीह एडिशन देखने की जिम्मेदारी दी. फरवरी 2021 से सफर शुरू हुआ. नौ महीने बाद कोरोना के कार्यकाल में गिरिडीह में प्रभात खबर का प्रसार गिर गया था. वह न सिर्फ फिर से मुकाम तक पहुंचा, बल्कि 2800 कॉपी तक यहां बढ़ गयी.
इस बीच 2021 के अंत में मैं पत्नी का इलाज कराने बेंगलुरू चला गया. एक माह बाद लौटा तो मुझे बोकारो एडिशन की जिम्मेदारी दी गयी. कहा गया कि प्रभात खबर बोकारो में चौथे नंबर पर है उसे बेहतर करना है. संपादकीय प्रभारी ने मुझे अपने तरीके से काम करने की छूट दी और एक साल में वह समय भी आया जब बोकारो में प्रभात खबर को टक्कर देने वाला अखबार नहीं था. इस बीच सितंबर 2022 में यहां बदलाव हुए और नये संपादक जीवेश रंजन आये. इनकी गिनती प्रभात खबर के तेजतर्राज संपादक में होती है. इनके ऊंचे कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ये भागलपुर में करीब आठ साल तक संपादक रहे, लेकिन प्रभात खबर चौथे से तीसरे नंबर पर नहीं आ सका. और अब धनबाद में भी यही कोशिश जारी है.
हां, तो बात हो रही थी 05 सितंबर 2023 की. इस दिन बोकारो के ब्यूरो चीफ ने शिक्षक दिवस की खबर के साथ करीब 30-35 फोटो भेजा था, चूंकि उस दिन पेज पर विज्ञापन ज्यादा था तो इतने फोटो को छापना संभव नहीं था. लिहाजा मैंने संपादक से बात की, उन्होंने कहा कि पेज के हिसाब से जितना फोटो हो सके लगा दो. मैंने भी वैसा ही किया. इन तस्वीरों में बोकारो के एक स्कूल की तस्वीर भी शामिल थी जो क्वालिटी ठीक नहीं होने के कारण नहीं लग सकी. अगले दिन 06 सितंबर को ब्यूरो चीफ ने इसकी शिकायत की. बात सामान्य थी, लेकिन संपादक जी ने मेरी जमकर क्लास ली. मैंने इसका प्रतिकार किया. इस जिच में मैंने मजीठिया के तहत अपने पद के अनुसार सैलरी मांगी तो बिना जानकारी दिये प्रबंधन में मेरा ट्रांसफर भागलपुर कर दिया.
मैंने मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर श्रम विभाग धनबाद में आवेदन दिया. बीते सात माह में सात सुनवाई हो चुकी है. प्रबंधन अपने वकील के जरिये हर हथकंडे अपना रहा है, लेकिन किस्सा खत्म नहीं हुआ, अभी तो कहानी शुरू हुई है…
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